कहते हैं, प्रतिभाएं पैदा होने के साथ ही पहचान में आ जाती हैं। व्यंग्य चित्रकार यानी कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई भी ऐसी ही एक प्रतिभा थे।
उनका जन्म केरल के कायमकुलम में हुआ था। उन्होंने वहीं के स्कूलों में पढ़ाई की। स्कूल में पढ़ते हुए ही उन्होंने अपने एक सोते हुए अध्यापक का कार्टून बनाया था। वह उनके जीवन का पहला कार्टून था। फिर उनके चाचा ने उन्हें कार्टून बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने मावेलिकारा में रवि वर्मा स्कूल आफ पेंटिंग में पेंटिंग का अध्ययन किया। शंकरजी की नाटक, स्काउटिंग, साहित्यिक गतिविधियों आदि में गहरी रुचि थी। गरीबों और संकटग्रस्त लोगों के प्रति चिंता उन्हें जीवन भर बनी रही और वह उनके कार्टूनों में परिलक्षित हुई।
पढ़ाई के दौरान ही शंकरजी के कार्टून ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ और ‘द बांबे क्रॉनिकल’ में प्रकाशित होने लगे थे। हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक पोथन जोसेफ 1932 में उन्हें एक स्टाफ कार्टूनिस्ट के रूप में दिल्ली ले आए और 1946 तक वे वहीं बने रहे। इस प्रकार वे और उनका परिवार अंतत: दिल्ली में बस गए। शंकर के कार्टूनों ने लार्ड वेलिंगटन और लार्ड लिनलिथगो जैसे वायसराय को भी आकर्षित किया। गांधी ने जिन्ना पर उनके एक कार्टून पर सवाल उठाते हुए शंकरजी को एक पोस्टकार्ड लिखा। ऐसे कई मौके भी आए जब शंकर के कार्टूनों पर विवाद हुए। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने एक पत्रिका की परिकल्पना की, जो तब साकार हुई जब जवाहरलाल नेहरू ने ‘शंकर वीकली’ का विमोचन किया।
हालांकि अपने कार्टूनों में वे अक्सर तटस्थ रहे। उल्लेखनीय है कि 17 मई, 1964 को प्रकाशित एक कार्टून में, पंडित नेहरू की मृत्यु से ठीक दस दिन पहले, एक दुर्बल और थके हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू को हाथ में मशाल लिए हुए दिखाया गया था, जिसमें पार्टी के नेताओं गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, कृष्णा मेनन और इंदिरा गांधी के साथ उन्हें दौड़ते हुए दिखाया गया था। उस पर नेहरू ने टिप्पणी की थी, ‘मुझे मत छोड़ो, शंकर’। शंकर वीकली ने अबू अब्राहम, रंगा और कुट्टी जैसे कार्टूनिस्टों को अपनी प्रतिभा निखारने का मौका दिया। 25 जून,
प्लीज यॉरसेल्फ/4 दिसंबर 1949 : अपनी कैबिनेट और कांग्रेसियों के बीच विवाद सुलझाने के लिए नेहरू ने जन गण मन को राष्ट्रीय गान और वंदेमातरम को राष्ट्रीय गीत बना दिया
1975 को आपातकाल के दौरान के. शंकर पिल्लई ने अपनी यह पत्रिका बंद कर दी थी।
शंकरजी बच्चों से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने 1978 में बच्चों के लेखकों के लिए एक वार्षिक प्रतियोगिता की स्थापना की। अंग्रेजी के साथ यह प्रतियोगिता अब हिंदी में भी आयोजित की जाती है। उन्होंने 1957 में नई दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर नेहरू हाउस में चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट की भी स्थापना की। बाद में 1965 में, अंतरराष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय भी यहां स्थित हुआ। इसमें अब बच्चों का एक पुस्तकालय और वाचनालय भी है, जिसे डॉ. बीसी राय मेमोरियल चिल्ड्रन लाइब्रेरी और रीडिंग रूम के रूप में जाना जाता है।
भारत सरकार ने 1991 में उनके सम्मान में दो डाक टिकट जारी किए, जिनमें उनके कार्टून हैं। उन्होंने 1965 में एक आत्मकथात्मक कृति ‘लाइफ विद माई ग्रैंडफादर’ भी प्रकाशित की। 2002 में ‘ए सिम्फनी आफ ड्रीम्स’ नाम से उनकी जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक प्रदर्शनी, ललित कला अकादेमी, दिल्ली में आयोजित की गई थी। उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में, केरल सरकार ने कायमकुलम, केरल के पास उनके गृहनगर कृष्णापुरम में अपनी तरह का पहला राष्ट्रीय कार्टून संग्रहालय और आर्ट गैलरी स्थापित किया। उन्हें 1956 में पद्म श्री, 1966 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा ‘आर्डर आफ द स्माइल’ (1977) सम्मान और दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट. (मानद) से सम्मानित किया गया।
No comments:
Post a Comment