चुनाव में होर्डिंग्स, बैनर व पोस्टर शुरू से प्रचार के महत्वपूर्ण भाग रहे हैं। राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने में आरंभिक काल से ही इनका अहम योगदान रहा है। आज बदले परिवेश में इनकी महत्ता तो अभी बनी हुई है, पर पहले इस क्षेत्र में कार्य करने वाले कारीगर गौण हो गए हैं।
आधुनिक जमाने में पोस्टर व होर्डिंग्स का काम करने वाले कारीगरों की जगह कम्प्यूटर ने ले लिया है। पहले चुनाव आते ही पेंटरों के पास पर्याप्त कार्य हो जाता था। उससे उनकी आमदनी भी अच्छी हो जाती थी। वहीं कई लोगों को रोजगार भी मिल जाता था। पेंटर व कारीगर इस बात को लेकर उत्साहित भी रहते थे कि लोंकतंत्र में उनकी भी भागीदारी है, मगर वर्तमान में यह कारोबार भी पूंजीपतियों की झोली में चला गया है और कई पेंटरों ने या तो अपना व्यवसाय ही बदल लिया है या फिर फ्लैक्स का कार्य कर रहे हैं।
गौरतलब है कि एक वह दौर था जब चुनाव में शहर से लेकर गांव तक की हर दीवार चुनावी रंग में रंगने के लिए पेंटरों की जरूरत होती थी। जो चुनाव के महीनों पहले से ही चौक-चौराहे बैनर-पोस्टरों और कटआउट की तैयारी में जुट जाते थे। चुनाव की तैयारी भी महीनों पहले शुरू हो जाती थी। कारीगर दिन-रात लग कर नेताओं के लिए बैनर-पोस्टर तैयार करते थे, वहीं आज बटन दबाते ही फ्लैक्स तैयार हो जा रहे हैं। तब चुनाव में एक होर्डिंग्स तैयार करने में जहां चार कारीगरों को तीन दिन लगते थे। नेताओं के संदेश को लिखने के लिए गिलहरी के बाल से बनी कलम का प्रयोग करते थे। पहले चुनाव में स्टेंसिल व वाल पेंटिंग का कार्य करने वाले पेंटर बताते हैं कि रात भर स्टेंसिल लेकर दीवारों पर पेंटिंग का कार्य होता था। चार-चार, पांच-पांच की टोली में कारीगर शाम होते ही निकल जाते थे और रात भर पेंटिंग करते थे। उस समय दिन में कार्य करने वाले दूसरे कारीगर होते थे और रात में दूसरे।
14 साल पहले बंद हुए हाथ से लिखे होर्डिंग्स
बताया गया है कि 2004 तक के चुनावों में हाथ से लिखे हुए होर्डिंग्स बैनर व पोस्टर का प्रयोग हुआ, पर उसके बाद इसका स्थान फ्लैक्स ने ले लिया। इस प्रकार हाथ से लिखे पोस्टर, बैनर व होर्डिंग्स का जमाना समाप्त हुए लगभग 14 वर्ष बीत गए। पेंटर कहते हैं कि पहले चुनाव होते थे, तो हमारे घरों में उत्सव जैसा माहौल रहता था। दर्जनों कारीगर महीनों कार्य करते थे। पर अब चुनाव होते हैं तो हम लोंगों को पता भी नहीं चलता।
रोजगार हुआ प्रभावित
जानकारों ने बताया है कि बैनर-पोस्टर, वाल राइटिंग और साउंड सिस्टम के शोर से एक तरफ जहां पर्यावरण को नुकसान होता था। वहीं लोग भी इससे परेशान रहते थे। वर्तमान में प्रचार का तरीका बदलने से पेंटर व इससे जुड़े दूसरे लोगों को रोजगार थोड़ा प्रभावित हुआ है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। इसी वजह से चुनाव आयोग ने इस पर सख्ती कर दी है।
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