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Sunday, October 30, 2022

चित्रकला में बेहतर भविष्य

 

चित्रकला में बेहतर भविष्य की तस्वीर


जिस प्रकार एक अच्छी तस्वीर में अभिव्यक्ति की क्षमता शब्दों से कर्इ गुना अधिक होती है, ठीक उसी प्रकार एक अच्छा चित्रकार किसी भी शब्दकार से अधिक कमा सकता है। आइए जानते हैं कि एक सफल चित्रकार बनने के लिए आप क्या कर सकते हैं और इस क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकते हैं।



कला अपने आप में एक भाषा है। जिस प्रकार एक अच्छी तस्वीर में अभिव्यक्ति की क्षमता शब्दों से कर्इ गुना अधिक होती है, ठीक उसी प्रकार एक अच्छा चित्रकार किसी भी शब्दकार से अधिक कमा सकता है। शायद यही वजह है कि जागरूकता के लिए चित्रकला को सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना जाता है। तो क्यों न इस विषय को जमा एक व जमा दो में ही शुरू कर दिया जाए।

यदि इस विषय को जमा एक व जमा दो कक्षाओं में इस शुरू कर दिया जाए तो आने वाले समय में बेरोजगारी का जहर भी नहीं पीना पड़ेगा। चित्रकला के क्षेत्र से रोजगार की अपार संभावनाएं जुड़ी हैं। वर्तमान दौर में परंपरागत रोजगार एवं व्यवसाय के अलावा भी विभिन्न रचनात्मक विधाओं में रोजगार के अवसर बढ़े हैं। विज्ञापन एजेंसी, प्रकाशनों में चित्रकारी, मुद्दे आधारित चित्रकारी एवं पाठ्यपुस्तकों के लिए चित्रकारी आदि ऐसे रोजगार हैं, जिनसे अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी चित्रकला अथवा कार्टूनों का विशेष महत्त्व है।



चित्रकला के क्षेत्र में बेहतर प्रतिभा विकसित करने के लिए कला अध्यापकों को एजुकेशन टूर और कला कार्यशालाओं के अवसर प्रदान कर विद्यालयों में कला विषय के प्रति विद्यार्थियों में सकारात्मक वातावरण तैयार करने का प्रयत्न करना चाहिए। किंतु, कला का महत्त्व तथा उपयोगिता तभी बढ़ सकेगी, जब पाठ्यक्रम में यह विषय उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर भी लागू होगा।

आइए जानते हैं कि एक सफल चित्रकार बनने के लिए आप क्या कर सकते हैं और इस क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकते हैं। चित्रविद्या सीखने के लिए पहले प्रत्येक प्रकार की सीधी टेढ़ी, वक्र आदि रेखाएँ खींचने का अभ्यास करना चाहिए। रेखाओं के माध्यम से वस्तुओं के स्थूल ढाँचे बनाने चाहिए। इसमें दूरी आदि के सिद्धांत का पूरा अनुशीलन किए बिना निपुणता नहीं आ सकती। दृष्टि के समानांतर या ऊपर नीचे के विस्तार का अंकन तो सहज है, पर आँखों के ठीक सामने दूर तक विस्तार अंकित करना कठिन है। इस प्रकार की दूरी का विस्तार प्रदर्शित करने की क्रिया को ‘पर्सपेक्टिव’ (Perspective) कहते हैं। किसी नगर की दूर तक सामने गई हुई सड़क, सामने को बही हुई नदी आदि के दृश्य बिना इसके सिद्धांतों को जाने चित्रित नहीं किए जा सकते। कुछ कोर्स पूरा कर लेने से सफल चित्रकार बनने में सहायता मिलती है।

पाठ्यक्रम

चित्रकला के पाठ्यक्रमों की विस्तृत विविधता है। कुछ पाठ्यक्रमों में तैल चित्र, एक्रिलिक या जल रंग के इस्तेमाल को शामिल किया गया है। कई मान्यता प्राप्त संस्थान वर्ष भर में किसी भी कार्यक्रम के लिए सुविधाजनक समय पर पेंटिंग कक्षाओं की पेशकश करते हैं। कुछ छात्रों को वे एक अलग संस्कृति और संदर्भ में कक्षा का अनुभव कराना चाहते हैं, तो कुछ विदेशों में चित्रकला पाठ्यक्रमों की पेशकश करते हैं।

चित्रकला में करियर बनाने के लिए आप ललित कला (फाइन आर्ट्स) में बैचलर डिग्री कोर्स बीएफए कर सकते हैं। इसमें प्रवेश की बुनियादी योग्यता 10+2 उत्तीर्ण है। चार वर्षीय बीएफए पाठ्यक्रम में डिजाइन, ड्राइंग, पेंटिंग और स्केचिंग की गहन शिक्षा दी जाती है। यदि आप बीएफए न करना चाहें तो एक वर्षीय फाइन आर्ट्‌स कमर्शियल आर्ट्स का डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं।

पेंटिंग में एक कोर्स में दाखिला कौशल को निखारने या एक ब्रांड के नए माध्यम का अनुभव करने के लिए एक शानदार तरीका हो सकता है। चित्रकारी कक्षाएं भी कला वर्ग के सभी प्रकार के लिए फायदेमंद हो सकती हैं। पेंटिंग में एक पाठ्यक्रम की लागत स्कूल और देश के अलग अलग भागों में अलग अलग हो सकती हैं। ऑनलाइन पाठ्यक्रम छात्रों के लिए बेहतर हो सकता है।

एमएफए चित्रकारी एक दो साल का पाठ्यक्रम है। पहले साल में आप अपने चुने हुए क्षेत्र में अपनी संभावनाएं तलाश कर सकते हैं। अपने दूसरे वर्ष के शुरू में आप अपने व्यक्तिगत अनुसंधान की योजना पर काम कर सकते हैं। दूसरे वर्ष स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए अनुसंधान परियोजना पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

मत सम्मत

एक वर्कशाप में दिल्ली की टीम के हेड प्रोनोबेस ने कहा था कि आज के दौर में हर छात्र पर इंजीनियर और डॉक्टर बनने का ही दबाव डाला जा रहा है। इस वजह से छात्र सिर्फ तकनीकी ढंग से सोचने वाली मशीन बन गए हैं। ऐसे में चित्रकला एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें छात्र अपने आप को अभिव्यक्त कर सकता है। कला के क्षेत्र में अपने शौक के अलावा भी छात्र प्रोफेशनल तरीके से काम कर सकते हैं।

चित्रकला में रोजगार के अवसर

नौकरियों के लिए आवेदन करते समय चित्रकला कोर्स एक अतिरिक्त योग्यता के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है। यह भी एक डिग्री पूरा करने के लिए आवश्यक हो सकता है। कई लोगों के लिए चित्रकला एक शौक है और वे मनोरंजन के लिए कक्षाएं लेते हैं। हालांकि, चित्रकला में एक कोर्स भी विश्वास का निर्माण और इस तरह सार्वजनिक रूप से अपने काम के प्रदर्शन के रूप में, अगले कदम उठाने के लिए प्रेरित करने में मदद कर सकते हैं।

भारतीय प्राचीन कला आज एक व्यावसायिक रूप ले चुकी है, जो युवाओं की कलात्मकता को ही बढ़ावा नहीं देती, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रही है। कला किसी भी संस्कृति का आईना होती है। इसके माध्यम से भविष्य में लोगों को सांस्कृतिक परिवेश के साथ-साथ सांस्कृतिक उन्नति के बारे में भी जानकारी हासिल होती है।

खेल-खेल में शिक्षा, यह गतिविधि शिक्षा को सरल बनाने में सहायक बनी है और इसे सफल बनाने में चित्रकला की सर्वाधिक उपयोगिता रही है। इसी तरह जिस छात्र ने चित्रकला विषय में रुचि ली है, वही एक अच्छा चित्रकार, डाक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट व अच्छा वैज्ञानिक बनकर देश और समाज में प्रतिष्ठित नागरिक बन सकेगा।

आजकल बहुत से संस्थान एवं विभाग अपना प्रचार व प्रसार पेंटिंग प्रतियोगिताओं के आयोजन द्वारा कर रहे हैं, जिससे बच्चों में बचपन से ही जागरूकता पैदा हो रही है चाहे वह नशा निवारण हो, चाहे ऊर्जा संरक्षण हो, चाहे जल संरक्षण, चाहे पुलिस व गृहरक्षा विभाग, चाहे उपभोक्ता जागरूकता अभियान हो, ये सभी पेंटिंग प्रतियोगिता करवाते हैं, ताकि बच्चा बचपन से ही इन सभी विषयों के प्रति जागरूक हो सके। जागरूकता के लिए चित्रकला को सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना जाता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संभावनाएं

आप अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और न्यूयॉर्क के लिए एक गहन अध्ययन यात्रा में शामिल हो सकते हैं। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद ललित कला के एक मास्टर के रूप में आप अपने खुद के कलात्मक अभ्यास व्यक्तिगत रूप से या एक कलात्मक सामूहिक के एक सदस्य के रूप में जारी रख सकते हैं।

प्रेरक प्रसंग

दिहाड़ी मजदूर से अंतरराष्ट्रीय चित्रकार बनीं भूरीबाई

मध्यप्रदेश का सर्वोच्च शिखर सम्मान हासिल करने वाली आदिवासी कलाकार भूरी बाई किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। भूरीबाई आज जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने का सपना भी उन्होंने कभी नहीं देखा था, लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि आपके साथ घटी एक घटना ही आपके पूरे भविष्य की बुनियाद बन जाती है। चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास, चांदी के भारी आभूषणों से सजी भूरी बाई को छुट्टियों में गांव जाने पर खेती करना और लोकगीतों की मधुर ध्वनि बेहद पसंद है।

पत्तियों के रंग से चित्रांकन की शुरूआत करने वाली भूरीबाई ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आगे चलकर वे एक सिद्धहस्त नामी कलाकार बन जाएंगी। भूरीबाई ने अपनी कला के जरिये विशिष्ट पहचान बनाते हुए ये साबित कर दिखाया है कि साधनहीन, ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में भी लगन और कुछ कर दिखाने की तमन्ना हो तो वे भी सफलता की बुलंदियों को छू सकती हैं।

आदिवासी भीली कलाकार भूरीबाई ने चित्र बनाने की प्रेरणा घर-परिवार और आसपास के माहौल से ली। तीज-त्योहारों में मां के बनाए गए भित्ति चित्रों को देखकर ही उन्होंने पारंपरिक रंगों से चित्र बनाना सीखा। बचपन में खेल-खेल में घर के आंगन और दीवारों पर खडिया, गेरू, काजल, हल्दी, सेमल की पत्तियों के रंग से चित्रांकन की शुरूआत करने वाली भूरीबाई ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आगे चलकर वे एक सिद्धहस्त नामी कलाकार बन जाएंगी।

सुखद संयोग

भूरीबाई बचपन से ही घर की दीवार और आंगन में पेंटिंग करती थीं। 17 साल की उम्र में ही भूरीबाई की शादी कर दी गई थी। शादी के बाद भूरीबाई अपने पति जौहर सिंह के साथ जब वो काम की तलाश में भोपाल आई, उस समय भारत भवन में निर्माण कार्य चल रहा था। एक दिन काम के दौरान ही वो जमीन पर बैठे चित्र बना रही थीं, तभी मशहूर चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन ने उन्हें देखा। स्वामीनाथन ने भील जनजाति से जुड़ी होने के कारण उनसे तीज-त्योहार पर बनाए जाने वाले पारंपरिक चित्रों को बनाने के बारे में कहा तो उन्होंने पहली बार कागज, कैनवास,  ब्रश और एक्रेलिक रंगों का प्रयोग किया। स्वामीनाथन को उनके बनाए चित्र पसंद आए। उन्हें दिहाड़ी मजदूरी में मिलने वाले छह रूपयों की जगह दस रूपये रोज चित्र बनाने का मेहनताना मिलने लगा। प्रोत्साहन और सहयोग से वो एक मजदूर से चित्रकार बन गईं।

जब खुल गए सारे बंद रास्ते

कुछ दिनों बाद उन्हें भारत भवन में चित्र बनाने के लिए बुलवाया गया। दस चित्र के 1500 रुपये मिले पर यकीन नहीं आया। सिर्फ चित्र बनाने के इतने पैसे। उनके रिश्तेदार और गांव के लोग उनके पति को भड़काते भी थे, तरह-तरह की बातें करते थे, लेकिन पति ने कभी रोक-टोक नहीं की। फिर पेंटिंग बनाना छूट गया। उसके बाद उन्होंने पीडब्ल्यूडी में भी मजदूरी की, कई सालों तक। एक दिन उनके पति के पहचान वाले ने बताया कि तुम्हारी पत्नी भूरी का अखबार में फोटो आया है। सरकार उसे शिखर सम्मान देगी। तब जाकर उनके परिवार वालों को उनके हुनर की कद्र का पता चला।

मर्दों की दुनिया में ढूंढा अपना रास्ता

पिथोरा भील आदिवासी समुदाय की एक ऐसी कला-शैली है जिसमें गांव के मुखिया की मौत के बाद उन्हें हमेशा अपने बीच याद रखने के लिए गांव से कुछ कदमों की दूरी पर पत्थर लगाया जाता है। और फिर इस पत्थर पर एक विशेष किस्म का घोड़ा बनाया जाता है। यह विशेष किस्म का घोड़ा ही पिथोरा चित्रकला को खास पहचान देता है। किंतु भीलों में यह विशेष किस्म का घोड़ा बनाने की इजाजत केवल पुरुषों को ही दी जाती है। यही वजह है कि भूरीबाई ने अपनी चित्रकला की शैली में घोड़े की डिजाइन बदल दी है।

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