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Tuesday, August 23, 2022

टैटू (आर्ट )

 

क्या आप जानते हैं आपकी खूबसूरती को निखारने वाले टैटू (आर्ट ) डिजाइन की शुरुआत भारत में कब हुई?



आइए जानें आजकल के युवाओं की पहली पसंद टैटू के इतिहास की दिलचस्प कहानी। आजकल युवाओं की पहली पसंद टैटू डिज़ाइन है। कभी किसी के नाम का टैटू बनवाना, तो कभी उस टैटू में कोई डिज़ाइन बनवाना, युवाओं की पहली पसंद बनता जा रहा है। आमतौर पर है एक टैटू को त्वचा के नीचे कलर डालकर शरीर पर उभारा जाता है जो शरीर पर एक न मिटने वाले निशान की तरह बन  जाता है। शरीर पर बनाया जाने वाला ये खूबसूरत डिज़ाइन कई तरह से लोगों की खूबसूरती बढ़ाता है।

खासतौर पर ये आजकल लड़कियों के बीच ख़ासा चलन में है और लड़कियां कभी इसे अपनी गर्दन पर बनवाती हैं, तो कभी हाथों की कलाई पर। लेकिन कभी आपने सोचा है कि इस टैटू डिज़ाइन की शुरुआत कब हुई और कैसे ये भारत में चलन में आया? अगर नहीं सोचा तो हम आपको बताते हैं कि किस तरह ये टैटू डिज़ाइन भारत में आया और क्या है इसकी कहानी

टैटू कला का सबसे पहला सबूत 5000 ईसा पूर्व से चला आ रहा है। समय और संस्कृतियों में, टैटू के कई अलग-अलग रूप आये और इसके अलग अर्थ प्रचलित हुए। लेकिन जब इसके इतिहास की बात की जाती है तो इसका कोई सही प्रमाण मिलना मुश्किल हो जाता है। फिर भी ऐसी मान्यता है कि टैटू डिज़ाइन वास्तव में एक प्राचीन कला है। जोकि, 3370 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई।



पश्चिमी चीन में थी टैटू डिज़ाइन की परंपरा 

शिनजियांग प्रांत में पश्चिमी चीन के कुछ कब्रिस्तानों ने कई टैटू डिज़ाइन का इतिहास मौजूद है। दरअसल वहां टैटू डिज़ाइन के साथ कई ममी मिले जो 2100 ईसा पूर्व के थे, तो कुछ को 550 ईसा पूर्व का बताया गया। बताते चलें कि प्राचीन चीनी प्रथाओं में, टैटू डिज़ाइन को थोड़ा बर्बर माना जाता था। वहां के कैदियों के चेहरे पर खास किस्म का टैटू बनाया जाता था, ताकि भविष्य में उनकी पहचान हो सके। वहीं प्राचीन मिस्र में मिले टैटू वाले ममी बताते है कि वहां यह कला कम से कम 2000 ईसा पूर्व से चलन में है। मिस्र में टैटू डिज़ाइन का संबंध किसी विशेष रोग के इलाज से हुआ करता था। वहीं एक और प्रचलित मान्यता के अनुसार प्राचीन मिस्र में टैटू का संबंध केवल महिलाओं से ही था, जो उनके व्यक्तित्व को दिखाता है.. 



सैकड़ों वर्षों से टैटू की परंपरा भारत के कृषि और वन क्षेत्रों में प्रतिष्ठित थी। प्रागैतिहासिक चट्टानों पर प्राचीन भूलभुलैया जैसी नक्काशी को आदिवासी समुदायों ने अपने शरीर पर कॉपी किया था। उन्होंने इस प्रक्रिया को गोदना जिसे हिंदी में सुई को दफनाना कहा जाता है, उन चिह्नों को आभूषण के रूप में दिखाया - इस तरह के आभूषण को कोई भी उनसे दूर नहीं कर सकता था, भले ही वे अपनी सारी सांसारिक संपत्ति खो दें। भारत की टैटू वाली अधिकांश जनजातियां देश के सुदूर भीतरी इलाकों में रहती थीं।  टैटू डिज़ाइन सबसे ज्यादा ट्राइब जनजातियों में प्रचलित हुआ जिसमें अपतानी टैटू डिज़ाइन सबसे ज्यादा प्रचलित था। इस टैटू डिज़ाइन की प्रक्रिया में त्वचा को काटने के लिए कांटों का उपयोग किया जाता है और गहरे नीले रंग में भरने के लिए जानवरों की चर्बी में मिश्रित कालिख का उपयोग किया जाता है। फिर घावों को संक्रमित होने दिया गया ताकि टैटू बड़े, गहरे और स्पष्ट हो जाएं। भारत सरकार ने 1970 के दशक में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन यह प्रथा पूर्वोत्तर के कुछ अछूते अंदरूनी हिस्सों में अभी भी बनी हुई है। भारत में टैटू का इतिहास बहुत पुराना है। टैटू 1980 के दशक से पहले तमिलनाडु में बहुत आम थे और ये भारत में टैटू विभिन्न जनजातियों से संबंधित लोगों की निशानी हुआ करते थे। पहले के समय में अलग-अलग जाति और जनजाति के लोग अपनी पहचान के लिए टैटू बनवाते थे।

प्राचीन काल से प्रचलित ये टैटू डिज़ाइन की कला कब  युवाओं की पहली पसंद बन गया पता ही नहीं चला। आजकल हर एक युवा इस डिज़ाइन को अपने स्टाइल में जोड़ना पसंद करता है और समय के साथ इसके कई अलग रूप भी प्रचलित हो गए हैं। 

युवा पीढ़ी का नशा

अपने दिल की बात टैटू के सहारे कहने का चलन आजकल के दौर का है, हम इसे फैशन कह सकते हैं। युवा पीढ़ी के लिए तो यह एक नशा सा ही बन गया है। लेकिन टैटू का जो इतिहास हम आपको बताने जा रहे हैं वह सदियों पुराना है। आज जो फैशन है पहले एक प्रथा थी, एक जरूरत थी।

पुरानी  परंपरा

हम टैटू को लेटेस्ट ट्रेंड के रूप में देखते हैं लेकिन हम जो आपको बताने जा रहे हैं उसे जानने के बाद हर वो व्यक्ति जिसने टैटू बनवाया है खुद को ओल्ड फ़ैशंड मानने लगेगा।



चीन में टैटू

प्राचीन चीन में टैटू असभ्य जनजातियों की निशानी माने जाते थे। चीनी साहित्य में ऐतिहासिक नायकों और डाकुओं से भी टैटू को जोड़ा गया है। चीन में कैदियों के चेहरे पर।  निशान बनाया जाता था जो उनके अपराधी होने का प्रमाण था।




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