फारस का प्रसिद्ध बिहजाद(पूर्व का रैफेल) संभवतः बाबर के समय भारत आया था।क्योंकि तुजुके बाबरी में एकमात्र चित्रकार बिहजाद का ही नाम मिलता है। इसे बाबर ने अग्रणी चित्रकार कहा है।
मुगल चित्रकला की नींव हुमायूँ के शासन काल में पङी।अपने निर्वासन के दौरान उसने मीर सैय्यद अली और अब्दुस्समद नामक दो फारसी चित्रकारों की सेवाएँ प्राप्त की । जिन्होंने मुगल चित्रकला का शुभारंभ किया।
मुग़ल कालीन चित्रशैली
मीर सैय्यद अली हेरात के प्रसिद्ध चित्रकार बिहजाद (जिसे पूर्व का रैफेल कहा जाता है। ) का शिष्य था।
अब्दुलस्समद ने जो कृतियाँ तैयार की उसमें से कुछ जहाँगीर द्वारा तैयार की गयी-गुलशन चित्रावली में संकलित है।
अकबर ने मुगल चित्रकारी को एक सुव्यवस्थित रूप दिया उसने चित्रकारी के लिए एक अलग विभाग खोला।
आइने अकबरी में मीर सैय्यद अली और अब्दुस्समद के अलावा 15 प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम प्राप्त होते हैं।जिनमें कम से कम तेरह हिन्दू चित्रकार थे।
अकबर कालीन प्रमुख चित्रकारों में – दसवंत,बसावन,महेश, लाल मुकंद, सावलदास तथा अब्दुलस्समद प्रमुख थे।
मुगल चित्रशाला में मुगल चित्रकला शैली में चित्रित सबसे प्रारंभिक और महत्त्वपूर्ण मुगलकालीन चित्रसंग्रह–हम्जनामा है जो दास्ताने-अमीर-हम्जा के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस पाण्डुलिपि में करीब 1200चित्रों का संग्रह है।इस कृति में लाल,नीले,पीले,कासनी और काले रंगों के छपाके मिलते हैं।
हम्जनामा को पूर्ण कराने के लिए मीर सैय्यद अली को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था।
हम्जनामा पांडुलिपि के चित्रों की विशेषताएं – विदेशी या विजातीय पेङ पौधों और उनके रंग-बिरंगे फूल पत्तों, स्थापत्य अलंकरण की बारीकियों, साजों सामान के साथ-2 स्री आकृतियों एवं आलंकारिक तत्वों के रूप में विशिष्ट राजस्थानी या उत्तर भारतीय चित्रकला के लक्षण यत्र-तत्र मिलते हैं।
मुल्ला अलाउद्दीन कजवीनी ने अपने ग्रंथ –नफाइसुल मासिर में हम्जनामा को हुमायूँ के मस्तिष्क की उपज बताया है।
अकबर के काल में चित्रकला-
अकबर के शासन काल में रज्मनामा नामक एक और पांडुलिपि तैयार की गयी। जिसमें दसवंत (एक कहार का बेटा) द्वारा बनाये गये चित्र मिलते हैं।इस विख्यात चित्रकार के चित्र रज्मनामा के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं नहीं मिलते हैं।
अकबर ने दसवंत को अपने समय का प्रथम अग्रणी चित्रकार तथा उसकी कृति रज्मनामा को मुगल चित्रकला के इतिहास में मील का पत्थर कहा है।
अब्दुसस्मद के राजदरबारी पुत्र मुहम्मद शरीफ ने रज्मनामा के चित्रण कार्य का पर्यवेक्षण किया था।
अबुल फजल द्वारा उल्लिखित चित्रकारों में फारुख वेग को छोङकर अन्य सभी चित्रकारों ने इस महत्त्वपूर्ण पांडुलिपि को तैयार करने में सहयोग दिया था।
दसवंत बाद में मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया था और उसने 1584ई. में आत्म हत्या कर ली थी।इसकी दो अन्यकृति मिलती हैं-खानदाने-तैमूरिया एवं तूतीनामा।
बसावन अकबर के समय का सर्वोत्कृष्ट चित्रकार था क्योंकि वह चित्रकला के सभी क्षेत्रों – रेखांकन,रंगों के प्रयोग,छवि-चित्रकारी तथा भू-दृश्यों के चित्रण में सिद्धहस्त था।
बसावन की सर्वोत्कृष्ट कृति है-एक कृशकाय (दुबले-पतले)घोङे के साथ एक मजनूँ को निर्जन क्षेत्र में भटकता हुआ चित्र।रज्मनामा के अतिरिक्त प्रमुख चित्रित पांडुलिपि है-रामायण एवं अकबरनामा।
अकबरनामा के चित्रों में यथार्थता एवं विश्वसनीयता कि जो स्वानुभूत भावना दृष्गोचर होती है वह अंयत्र कम ही मिलती है।इसके चित्रों में – पेङ – पौधे, वन्यजीवों और भू-दृश्यों का जीवंत चित्रण मिलता है।
अकबर के शासन काल में पहली बार भित्ति चित्रावली की शुरूआत हुई।
जहाँगीर के समय में चित्रकला-
जहाँगीर का काल मुगल चित्रकला के चरमोत्कर्ष का काल था जहाँगीर ने हेरात के एक प्रसिद्ध चित्रकार आकारिजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रणशाला की स्थापना की।
जहाँगीर के काल में हस्तलिखित ग्रंथों की विषय – वस्तु को चित्रकारी के लिए प्रयोग की पद्धति को समाप्त करके उसके स्थान पर छवि-चित्र (व्यक्ति के चित्र) प्राकृतिक -दृश्यों एवं व्यक्तियों के जीवन से संबंधित चित्रण की परंपरा की शुरूआत हुई।
जहांगीर के काल के प्रमुख चित्रकारों में – फारूखबेग,बिसनदास, उस्ताद मंसूर,दौलत, मनोहर तथा अबुल हसन थे।
फारुख-बेग जो अकबर के समय मुगल-चित्रणशाला में प्रवेश किया था। जहाँगीर के समय उसने (फारुख वेग) बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का चित्र बनाया था।
दौलत फारुख बेग का शिष्य था।उसने बादशाह जहाँगीर के कहने पर अपने साथी चित्रकारों – बिसनदास गोवर्धन एवं अबुल हसन आदि का सामूहिक चित्र बनाया था।और साथ ही अपना भी एक छवि-चित्र बनाकर लाया था।
जहाँगीर ने अपने अग्रणी चित्रकार बिसनदास को अपने दूत खान आलम के साथ फारस के शाह के दरबार में चित्र बनाकर लाने के लिए भेजा था और उसने शाह उनके अमीरों तथा उनके पिरजनों के अनेक छवि-चित्र बनाकर लाया था।
जहाँगीर के समय के सर्वोत्कृष्ट चित्रकार –उस्ताद मंसूर और अबुल हसन थे।बादशाह ने उन दोनों को क्रमशः नादिर-उल-असरर (उस्ताद मंसूर) और नादिर-उद्-जमा (अबुल हसन) की उपाधि दी थी।
उस्ताद मंसूर प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ चित्रकार था जबकि अबुल हसन को व्यक्ति – चित्रों में महारथ हासिल था।
उस्ताद मंसूर-दुर्लभ-पशुओं,विरले पक्षियों और अनोखें पुष्पों के अनेक चित्र बनाये। उसकी महत्वपूर्ण कृतियों में – साइबेरिया का एक बिरला-सारस तथा बंगाल का एक अनोखा पुष्प विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
अबुल हसन आकारिजा का पुत्र था। वह बादशाह की छाया में ही रहकर बङा हुआ था, उसने 13वर्ष की आयु में ही (1600ई.) में सबसे पहले –ड्यूटर के संत जान पॉल के तस्वीर की एक नकल बनाई थी।
अबुल हसन ने तुजुके-जहाँगीरी के मुख-पृष्ठ के लिए चित्र बनाया था।
लंदन की एक लाइब्रेरी में एक अद्भुत चित्र उपलब्ध है, जिसमें एक चिनार के पेङ पर असंख्य गिलहरियों अनेक प्रकार की मुद्राओं में चित्रित है। यह चित्र संभवतः अबुल हसन का माना जाता है।किन्तु यदि पृष्ठ भाग पर अंकित नामों का प्रभाव माना जा
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